आगे सफर था और पीछे हमसफर था..
।
।
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..
।
।।
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
।
।
।
ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...
।
।
।
मुद्दत का सफर भी था और बरसो
का हमसफर भी था
।
।
।
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....
।
।
।
।
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...
।
।
।
।
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
।
।
।
।
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
।
।
।
।
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
।
।
।
।
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
।
।
।
।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
।
।
।
।
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....
।
।
।
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. ......
।
।
।
लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या ब नना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है.
।।
“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...!!”
।
दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...
।
बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!
।
भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की.
।
जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। ...!!
।
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रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..
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मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
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ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...
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मुद्दत का सफर भी था और बरसो
का हमसफर भी था
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रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....
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यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...
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पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
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बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
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वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
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सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
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"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
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"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....
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अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. ......
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लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या ब नना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है.
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“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...!!”
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दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...
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बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!
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भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की.
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जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। ...!!
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