जबसे उसको देखा कोई और मंजर नहीं देखा,
साहिल पे रहा मगर मैंने समंदर नहीं देखा।
ढूंढता rahi वो हमेशा मेरी ही आँख में तिनका,
मगर खुद कभी आईना झाँक कर नहीं देखा।
उसने आजमा कर बहुत देखा मुझे, मगर ,
अच्छाइयाँ भूला दी अच्छाइयों के साथ नहीं देखा।
वो तैरना jaanti thi नदी तो पार कर दी उसने,
मगर ऊपर ऊपर ही rahi गहराइयों में उतर कर नहीं देखा।
कैसे kehti hai वो कि दुनिया में हैं खुशियाँ बहुत ,
उसने जिन्दगी में कभी तितली के पीछे भाग कर नहीं देखा।
कांधे पे हाथ रखने से क्या होगा कोई मुझसे पूछे ,
वो क्या जाने इश्क़ जिसने रातों में जाग कर नहीं देखा।
ये मेरी दिल्लगी थी कि मैं उसे अपना कहता रहा,
मगर एक उसकी दिल्लगी मुझे कभी अपना कहकर नहीं देखा।
Wo
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