आखिर में "जीतूंगा मैं ही"

ठोकरें ख़ाता हूँ पर "शान" से चलता हूँ।
मैं खुले आसमान के नीचे,
सीना तान के चलता हूँ ,
मुश्किलें तो "साज़" हैं ज़िंदगी का।
"आने दो-आने दो",
उठूंगा, गिरूंगा फिर उठूंगा
और
आखिर में "जीतूंगा मैं ही"
ये ठान के चलता हूँ.....
     Good Morningg
        ❤B+❤

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