पिता के लिये

एक बेटी ने जिद पकड़ ली "पापा मुझे
साइकिल चाहिये !
..
..
पापा ने कहा अगले महीने दिवाली
पर जरुर साईकल
लाउंगा ! प्रॉमिस !
.
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एक महीने बाद... पापा , मुझे
साइकिल चाहिये , आपने प्रॉमिस
किया था ... !
.
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वह चुप रहा ...
शाम को दफ्तर से लौटा बेटी
तितली की तरह खुश हुई व़ाह ! थॅंक्स
पापा , मेरी साइकिल के लिये
अगले दिन.... पापा ! आपकी उंगली
की सोने की अंगूठी कहाँ गई .?
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.
बेटा ! सच बोलूँगा ... कल ही बेच दी
तुम्हारी साइकिल के लिये .....!
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बेटी रोते हुए , पापा, ! पैसों की
इतनी दिक्कत थी तो मत लाते .....
.
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नहीं खरीदता तो मेरी प्रॉमिस
टूटती
तुम्हे फिर मेरे किसी वादे पे
विश्वास नहीं होता .
तुम यही समझती कि "प्रॉमिस
तोड़ने के लिये
किये जाते है !"
.
.
मेरी अंगूठी दूसरी आ जायेगी
मगर "टूटा हुवा विश्वास
छूटा हुवा बचपन दोबारा नहीं
लौटेंगे !"
जाओ !
साइकल चलाओ !....

अपने से ज्यादा अपनी बेटी की
ख़ुशी चाहने वाले पिता के लिये

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